Sunday, January 9, 2022

तुम्हारा मौन

तुम्हारा मौन 
सागर समान
वर्षा के पूर्व 
चटकती धूप 
दु:ख की गठरी बांधें
हम सभी हैं मौन 
किसी गुफा में छुप 
लेकिन चाह  कर भी  
तोड़ नहीं पाते 
चलते जाते मन के पांव 
ठिठक ठिठक कर 
आओ निकल कर 
वर्षा  में , धूप में, हवा में 
पुछो सागर  से, धूप से, हवा से 
आत्मा के पत्तों को छूती
वर्षा की नन्हीं उँगलियों से 
ये तुम्हारा है कौन !

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