तुम्हारा मौन
सागर समान
वर्षा के पूर्व
चटकती धूप
दु:ख की गठरी बांधें
हम सभी हैं मौन
किसी गुफा में छुप
लेकिन चाह कर भी
तोड़ नहीं पाते
चलते जाते मन के पांव
ठिठक ठिठक कर
आओ निकल कर
वर्षा में , धूप में, हवा में
पुछो सागर से, धूप से, हवा से
आत्मा के पत्तों को छूती
वर्षा की नन्हीं उँगलियों से
No comments:
Post a Comment