तालाब के किनारे, तुम आए थे,
आम के पेड़ के नीचे भरी दुपहरी सायकल की घंटी बजाए थे
विदा लेने, तुम घर पर आए थे l
जब तुम जा रहे थे पढ़ने, घर से दूर
दूसरे शहर में, शायद टाटानगर या कानपूर
तार टूटा मन में और एक तारा बहुत दूर l
फिर कोई ख़बर नहीं, अपनी अपनी दुनिया की
कभी-कभी कोई ख़बर मिलती उड़ती उड़ती चिड़िया सी
मन आसमान और चाह एक बेसिम्त उड़ती चिड़िया थी l
वर्षों बाद, नीले सागर किनारे हुई थी मुलाकात
दो तीन पल धूमते रहे साथ साथ
फिर उड़ चले थे हम दोनों अपनी संभावनाओं का पकड़े हाथ l
वर्षों बाद, एक पक्षी आ बैठा पुरानी शाखों पर
सहरा के बीच सहारा है यादों की आँखों पर
मुसलसल जलता है अलाव वक्त की राखों पर l
अब नहीं है आम का पेड़ वहाँ, बस तिश्नगी है तालाब के पास
खण्डहर है, धर नहीं, फिर भी, आस-पास यादें हैं ख़ास,
राह चलता एक राही रूक कर उनसे बुझाता अपनी प्यास l
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