अप्प दीपो भव:
गुरू और शिष्य के मध्य
स्नेह और आदर परस्पर
मिलते हैं प्रश्नों के रूप में
कुंठाओं और बर्जनाओं से
परे जिज्ञासा और विनम्रता से
भरे शब्द शिष्य के -
विषय में गुरुत्व भरते हैं
जीवन मूल्यों के क्षरण के
इस काल में नई आशा का
संचार करते हैं, एक बार फिर
एक किरण दिखती है
संघर्ष करती हुई अँधेरे से
अँधेरे में प्रकाश की चाह में
अंतत: श्रद्धा की ही होगी
विजय ज्ञान से उत्पन्न
अहंकार पर सहजता का
विश्वास का प्रज्ञा का
गुरू एक शांत सरोवर
शिष्य घाट पर बैठा
प्यासा धीरे धीरे बढ़ रहा
जल की ओर, साधक
साधना की ओर गहरे
पैठने, अपना दीप
स्वयं बनने, जलकर स्वयं !
@ anilprasad 2018
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